रविवार, 10 जनवरी 2010

ये ज़िन्दगी एक अजीब कहानी है

ये ज़िंदगी एक अजीब कहानी है

यूँ तो सबकी आँखों में पानी है
पर मेरे मन तेरा नहीं कोई सानी है
क्यों परेशां है तू इस कदर कि
हर मौसम खाली-खाली है
यूँ तो ज़िन्दगी में गम मिले नहीं किसको
पर इतना समझ ले कि यहाँ
हर ख़ुशी तेरी ही परछाई है
क्या कहूँ तुझसे मैं अब मेरे पास
न शब्द बचे और न वाणी है
तू जान सके तो जान ले
ये कहानी नई नहीं पूरानी है
क्यूं गुम है इस भीड़ में इस कदर कि
सोचती हूँ किस कोने में खोजूं तुझे
जाने क्यूँ नहीं मानता तू कि
ये दुनिया अपनी नहीं परायी है
जायेगा जिधर भी ठोकर तो मिलेगी
मगर गिरकर सम्हलना ही जिंदगानी है
यही राज है इस भूलभुलैया सी ज़िन्दगी का
कि इसके हर पल में बसी एक नई कहानी है
संजोले इन यादों की लरीयों को, नहीं तो
गुज़र जायेगा, ये जो बचा, एक बूँद पानी है
जब होता है तू जिसके भी आसपास नहीं समझता कोई
पर जाने के बाद तेरे, तुझे खोजता है हर कोई
सबको प्यार देने कीआदत ने ही
जहां में, तेरी ये अलग पहचान बनायीं है
बनाये रख तू आवाज़ अपनी बुलंद
की जाने के बाद भी तेरे, जहां में गूंजती रहे
यूँ तो यहाँ हर तरफ शोर इस कदर फैला है
जो मधुरतम वाणी को कर्कश बना दे
पर फिर भी यहाँ महापुरुषों का मौन गुंजायमान है
आखिर नहीं पूजता कोई वीरान करने वालों को
तभी तो, यहाँ आज भी सुनाई देती है
उन रन-बांकुरों की निर्भय दस्ताने
जिन्होंने अपने स्वाभिमान की लाज बचायी है
मरते नहीं जो सच्चे संघर्ष में कुर्बान हो
अपनी माँ भी तो उन्ही की कहानी सुनाती है
फिर तू क्यों यूँ बिलख परा आज मेरे मन
जो एक छोटी सी चोट खायी है
देख तो सही एक बार पलट कर, की कितना
खुश नसीब है तू जो, अनायास ही
मुस्कुरा देते है लोग, हँसता देख तुझे
मालूम है मुझे की
ये ज़िन्दगी एक अजीब कहानी है
कभी हंसाती है कभी रुलाती है
पर तू जिंदादिल है इसीलिए तुझको यहाँ
हर मौसम में रात बितानी है
ये जीवन एक अज़नबी पहेली है
यहाँ जीतकर भी हार और
हारकर भी जीत मनानी है