गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

ये रोशनी का दरिया आ गया कहाँ से,
इन अँधेरी गलियों के ख़यालों में।
ये ओस की बूंदे आई कहाँ से,
इन रुखी चट्टानों के चेहरे पे।
ये मौत का साया क्यूँ मंडरा रहा है
इन मासूम कलियों पे।
क्यों तरसती हैं ये माटी,
अपने ही लाडलों की क़ुरबानी को आज?
ये क्या हो रहा है यहां इस झन्झावात में
इतने सवाल हैं उल्टे-सीधे मगर ज़वाब कहाँ?
यही खोजते- खोजते आज मैं
चली आई यहाँ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. इतने सवाल हैं उल्टे-सीधे मगर ज़वाब कहाँ?
    यही खोजते- खोजते आज मैं
    चली आई यहाँ।
    वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  2. aap sabaka shukriya ........ hausala aajafayi ke liye :) ....... sorry for dely because of our net problem :(

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  3. hmm.sahi kaha.wakai umda.ye ladki kavi ban ne layak hai.ise ek mauka milna hi chahiye.
    bahut umda.
    keep it on

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